विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय के बारे में

15 सालों से सेवार्थ

नागौर जिले की पावन भूमि युगों-युगों से वीरों, यौद्धाओं एवं गौरक्षार्थ अपना बलिदान देने वाले गौभक्तों एवं भक्ति करने वाले संतो की तपोस्थली रही है।

नागौर के वीरवर राव अमरसिंह राठौड को कौन नहीं जानता भक्त शिरोमणी मीराबाई ने तो अपनी कृष्ण भक्ति का परिचय समस्त विश्व को दिया। गौमाता की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहूति देने वाले परम् गौरक्षक वीर तेजाजी महाराज ने गौरक्षा करके नागौर की भूमि का नाम सदा-सदा के लिए इतिहास के पन्नों में सबसे ऊपर रखा है। मुगल बादशाह जहाँगीर के काल में गौहत्या बन्द करवाने वाले कवि बारठ नरहरिदास जी महाराज की जन्म स्थली नागौर ही है। जीवदया के सिद्धान्तवादी भगवान जम्भेश्वर की जन्मस्थली एवं कर्म स्थली नागौर ही है। एशिया का सबसे बडा़ विश्व प्रसिद्ध रामदेव पुश मेला नागौर की धरती पर ही भरा जाता है। नागौरी नस्ल के बैल तो विश्व में प्रसिद्ध है। इसी नागौर की पावन भूमि पर वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ के स्मारक से 8 कि.मी. दूर जोधपुर रोड़ पर गौरक्षक तेजाजी महाराज की जन्मस्थली खरनाल की शरहद में गौलोक महातीर्थ स्थापित है जो विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय के नाम से विख्यात है। यहाँ पर दुर्घटनाग्रस्त, पिडाग्रस्त गौमाता की बडे़ स्तर पर सेवा एवं चिकित्सा कार्य होता है। विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय की स्थापना 23 फरवरी 2008 को की गई।

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विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय, नागौर टीम

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मेडिकल टीम

गौशाला टीम

गौपालकों की टीम

गौशाला टीम

गौ सरंक्षण

विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय (गौ लोक महातीर्थ) द्वारा आस पास के लगभग 350 कि.मी. वृतक्षेत्र मे राजस्थान के बारह जिलों से बीमार, दुर्घटनाग्रस्त व पीडाग्रस्त गौवंश हजारों की संख्या में लाकर सेवा की जा रही है। इन गौवंश में जो अत्यन्त कुपोषण का शिकार, लूला लंगड़ा, अन्धा बीमार, रोग ग्रस्त हैं उनकी सेवा (गौ लोक महातीर्थ) द्वारा की जाती है।

अपाहिज गौवंश की सेवा सामग्री तथा संसाधनों का गौलोक सेवा महातीर्थ में अभाव हैं अतः गौभक्तों से निवेदन है, कि सामथ्र्य नियमित सेवा सामग्री, घास, चारा, पौष्टिक आहार, ओषधियां, जल छाया आदि में सहयोग करे, करवायें तथा स्थाई संसाधनों चिकित्सालय, गौ विश्राम ग्रह, जमीन आदि में अपनी शक्ति व सामथ्र्य के अनुसार सहयोग करें, एवं अपने इष्ट मित्रों से करवायें।

विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय

श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर स्वामी कुशाल गिरीजी महाराज के नेतृत्व में: गौवंश आदिकाल से हिन्दुस्थान के गौरव और समृद्धि का प्रतीक रहा है। अत्याचारियों द्वारा इस देश में जब गौवंश पर अत्याचार होने लगा तो राष्ट्र अपनी प्रतिष्ठा खोने लगा। धीरे-धीरे गौवंश की सेवा में कमी आती गई और साथ ही गौ हत्या व अत्याचार को बढावा मिलता गया तो राष्ट्र का गौरव एवं समृद्धि रसातल की ओर अग्रसर होने लगी। गौ सेवा के माध्यम से राष्ट्रीय गौरव की पूर्ण स्थापना कर समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाने की भावना से आदि शक्ति भंवाल माता की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर स्वामी कुशाल गिरीजी महाराज के नेतृत्व में विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय का निर्माण 23 फरवरी, 2008 को हुआ। वैसे तो हजारों गौशालाओं का संचालन हो रहा है जिसमें बहुत बड़ी व नामी गौशालाएँ सम्मिलित हैं पर जब गौशाला का नाम आता हैं और जो तस्वीर जन सामान्य के मस्तिक में ऊभरती है, उससे बहुत भिन्न है विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय की तस्वीर।

इस (गौलोक महातीर्थ) की स्थापना का मूल उद्देश्य यही है कि जो लावारिस गौवंश दुर्घटनाग्रस्त एवं अन्य बीमारी की पीड़ा से कराह रहा हो या मरणासन्न स्थिति से व्याकुल होकर सडकों के किनारे भटकता हो और भूख प्यास से व्याकुल होकर कहीं गहरे गढ्ढे में गिर गया हो या किसी वाहन की चपेट में आकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया हो ऐसे गौवंशों को 18 एम्बुलेंसों द्वारा समय पर लाकर उसका उपचार एवं इलाज कार्य करके बीमार गौवंश की सेवा करके एक नया जीवन देना ही (गौलोक महातीर्थ) का उद्देश्य हैं। विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय में स्वस्थ एवं दुधारू व घरेलु गौवंश नहीं रखा जाता हैं केवल दुर्घटनाग्रस्त एवं पीडाग्रस्त गौवंश को ही रखा जाता हैं, प्रतिदिन 2 क्विं. दूध आसपास के गाँवों से लाकर उठने में असर्थ गौवंश एवं अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। वर्तमान विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय, नागौर 2. विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय, जोधपुर (शाखा) ग्राम-रलावास, 3. काँजी हाऊस ‘नगर परिषद् की गौशाला’। इन तीनों केन्द्रों में 2500 से भी अधिक घायल गौवंश उपचाराधीन है।

गौवंश की चिकित्सा सेवा

विश्व स्तरीय गौ चिकत्सालय का सबसे महत्वपूर्ण विभाग है ‘‘मेडिकल कक्ष’’ विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय नागौर पहुंचने वाले पीड़ित, बीमार व दुर्घटनाग्रस्त गौवंशों को प्राथमिक उपचार हेतु सर्वप्रथम मेडिकल विभाग को सुर्पुद किया जाता है। मेडिकल विभाग में प्राथमिक ‘‘चैकअप व ईलाज’’ के पश्चात गौवंश को उनकी शारीरिक स्थिति एवं सेवा सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार बनायी गयी श्रेणियों में ‘‘रैफर’’ कर दिया जाता है तथा गंभीर रूप से लाचार, दुर्घटनाग्रस्त व वृद्ध गौवंश को ‘‘अत्यधिक घायल वार्ड (आई.सी.यू)’’ में पूर्ण स्वस्थ लाभ मिलने तक रखा जाता है। गौलोक महातीर्थ में गौमाता की पीड़ा शीघ्रतिशीघ्र दूर कैसे हो इस हेतु अनुभवी चिकित्सक, डिग्रीधारी कम्पाउडर, सेवाभावी गौसेवक हर समय हाजिर रहते है। तभी तो पूरा भारत गौलोक महातीर्थ की गौ सेवा से प्रेरणा लेते हुए नतमस्तक है और आज यह विश्व स्तरीय गौ चिकित्सालय’’ के नाम से अपनी एक अमिट छवि का निर्माण करते हुए निरंतर गौ सेवा की और अग्रसर है।

गौवंश के उपचार हेतु अलग अलग बिमारी के अनुसार वार्डो की व्यवस्था की गई है जैसे घायल वार्ड, अत्यधिक घायल वार्ड, कैंसर पीड़ित वार्ड, तीन पैर वार्ड, घायल साण्ड वार्ड,सिजेरियन वार्ड, शरीर पीड़ित वार्ड इत्यादि। साथ ही अलग-अलग बीमारियों में दिऐ जाने वाले अलग-अलग भोजन निश्चित माप दण्डानुसार गौमाता को निश्चित समय पर बदल-बदल कर दिया जाता है। सर्दियों में वृद्ध गौवंश को लापसी, मक्की, मैथी, अजवायन, बाजरी, खोपरा, गुड़, तेल आदि को पकाकर खिलाया जाता है वही गर्मियों में ठण्डा रहने वाले जौ, खल व चापड़ खिलाये जाते है। यहां पर गौमाताओं की सेवा जन्म देने वाली ‘‘माँ’’ से भी कहीं अधिक आत्मीयता, प्रेम सर्मपण से होते देखकर हर कोई आगन्तुक सुखद संवेदनाओं और मानवीय गुणों के प्रति कटिबद्ध व संकल्पित सा हो जाता है। वृद्ध व बीमार गायों को दिन में कई बार स्थान बदलवाना (पलटना), उनके सहारे के लिए छलनी से छानी हुई मखमली रेत के तकिये बाजू में लगाकर रखना।